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Pashupati Vrat । Pashupatinath Vrat Katha

1 year ago 3 4.7 K

Pashupati Vrat : यदि आपको कोई विशेष समस्या हो जिसे आप किसी के साथ उसका साझा नहीं कर पा रहे हो,या कोई ऐसी समस्या जो आपको बहोत दिनों से हो रही हो और बहोत कष्ट दे रही हो तो आपको पशुपति व्रत Pashupati Vrat जरूर करने चाहिए यह आपको 5 सोमवार लगातार करने होते हैं।

Pashupati Vrat
Pashupati Vrat katha

Pashupati vrat: भगवान भोलेनाथ के प्रिय व्रतों में से एक है। हो सकता है इस व्रत का नाम बहुत कम लोगों ने सुना होगा लेकिन यह व्रत बहुत ही लाभकारी है। शास्त्रों में बताया गया है की पशुपति व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन की हर परेशानी दूर हो जाती है और उसकी हर इच्छा पूरी होती है। अगर कोई अधिक कर्ज के नीचे दबा हुआ है या किसी का वैवाहिक जीवन से परेशान है, वो इस व्रत को जरूर करना चाहिए। यह व्रत बहुत ही सरल है। इसे रखने के लिए कोई शुभ मुहूर्त या कोई खास दिन की आवश्यकता नहीं पड़ती। तो आइए जानते हैं कि कैसे रखें पशुपति व्रत और क्या हैं इसके नियम।

कब से शुरू करें पशुपति व्रत

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Pashupati Vrat

इस व्रत को किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष में किया जा सकता है। बस यह ध्यान रहे की इस व्रत को करने के लिए सोमवार का दिन हो। अगर आप मन के मुताबिक फल पाना चाहते हैं तो इस व्रत को पुरे विधि विधान के साथ करें। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को पूरे 5 सोमवार तक करना चाहिए। तभी इस व्रत का फल आपको मिलता है।

पशुपति व्रत करने का नियम :

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सुबह अच्छे से नहाने के बाद मंदिर में पहुंचकर सबसे पहले भगवान शिव को प्रणाम करे। शिवलिंग के पास पहुंच कर उसके आसपास थोड़ी सफाई भी कर दे। शिवलिंग का जल अभिषेक से करे और याद रखे किसी हड़बड़ी में जल न चढ़ाये धीमे धीमे धार से जल चढ़ाये और मन में “ॐ नमः शिवाय” या “श्री शिवाय नमस्तुभ्यं ” मन्त्र का जाप करे । घर पहुंच कर पूजा की थाली को घर के मंदिर में रख दे।

इसे आप कोई से भी सोमवार से शुरू कर सकते हो पर याद रहे व्रत छूटने नहीं चाहिए।

सुबह एवंम शाम के समय भगवान शिव का जल अभिषेक करना है तथा पूजा करनी है।

पूजा की थाली में कुमकुम, अबीर, गुलाल, अष्टगंधा, लाल चन्दन, पीला चन्दन, अक्षत (बिना खंडित चावल) रखे।
सुबह के समय फल का सेवन करना है।
शाम के समय घर से 6 घी के दिए ले कर जाएँ (उसी थाली में जो आपने सुबह पूजा से समय इस्तेमाल की थी)
साथ में कुछ मीठा पकवान बना कर लेकर जाएँ, (चूरमा, हलवा इत्यादि)
उस पकवान के 3 हिस्से कर दें, 2 हिस्से मंदिर में ही रख दें और 1 हिस्सा अपने साथ ले आएं।
दीयों में से 5 दिए मंदिर में ही भगवान पशुपति नाथ के नाम से अपनी कामना करके लगा दें।
बचे हुए 1 दिए को वापस अपनी थाली में ले आओ तथा घर की चौखट के सीधे हाथ की तरफ रख दें।
अब जब आप अपना शाम का भोजन करें उस वक़्त उस बचे हुए पकवान के तीसरे हिस्से को भी साथ में ग्रहण करें।

याद रहे पूजा की थाली में रखी गया सारी वस्तुए आपको शाम को भी इस्तेमाल करनी है इसलिए उसे अधिक मात्रा में रखे।

Pashupati Vrat Me Kya Khana Chahiye? (पशुपति व्रत में क्या खाना चाहिए ) :

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पशुपति व्रत में सुबह के समय आप साबूदाने की खिचड़ी,दूध, केला,मावे की मिठाई, फल,आदि फलाहार खा सकते है | शाम की पूजा के बाद पूरा भर पेट भोजन करे जिसमे रोटी सब्जी, पराठे या जो भी आपके घर में बनता है वो करे |

पशुपति व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं :

बहोत लोग पूछते है की पशुपति व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं तो इसका जवाब है की पशुपति नाथ के व्रत में नमक खाया जा सकता है | और आप सुबह और शाम दोनों समय के खाने में नमक का प्रयोग कर सकते है | इस व्रत में नमक खाने से कोई भी परहेज नहीं है |

पशुपतिनाथ व्रत के नियम (Pashupatinath Vrat ke Niyam)

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पशुपतिनाथ व्रत 5 सोमवार को किया जाता है और अगर किसी सोमवार को आपको कोई बाधा आ जाती है जैसे कही जाना पड़ जाए या पीरियड्सआ जाये जिसकी वजह से आप इस व्रत को ना कर सके तो उस दिन व्रत तो करे (यह व्रत 5 सोमवार में नहीं गिना जाएगा)|

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पशुपति नाथ जी का ये व्रत विश्वास और श्रद्धा के साथ किया जाता है| इस व्रत में घमंड तथा अहंकार का कोई स्थान नहीं होता है| इसलिय इस व्रत को करने से पहले अपने अहंकार को त्याग देना चाहिए |

भगवान भोलेनाथ को पंचानंद भी कहा जाता है इसलिए पांच दिए भगवान शिव के सामने जलाते समय अपने मन में कामना प्रकट कर दे की आप किस इच्छा की पूर्ती के लिए भगवान पशुपति नाथ का व्रत और पूजा कर रहें है |

शिवपुराण के अनुसार कहा गया है की जिस मंदिर में पशुपतिनाथ का पहला व्रत किया जाता है उसी मंदिर में इसके पांचो व्रत पूर्ण किये जाते है , व्रत के बीच में मंदिर को नहीं बदला जाता है |

अगर व्रत के बीच में आपको कही जाना पड़ गया है तो वापस आकर उसी घर और उसी मंदिर में व्रत को आगे बढाओ |

पशुपतिनाथ व्रत 5 सोमवार को किया जाता है, यह एक ही स्थान पर पूरा किया जाता है जब तक व्रत का उद्यापन संपन्न नहीं किया जाता है |

एक बार पशुपतिनाथ व्रत पूरा होने के बाद फिर से व्रत करने के लिए तीन महीने का इंतज़ार करे |

अगर पशुपति व्रत के दिन आपका कोई अन्य व्रत आ जाए तो आप अपना व्रत करे| पशुपतिनाथ व्रत को अगले सोमवार से करे|

अगर आपके एक ही घर के कोई 2 या 3 व्यक्ति (जैसे पति-पत्नी, देवरानी-जेठानी, माँ- बच्चे) साथ में पशुपतिनाथ व्रत कर रहे है तो पूजा की थाली, मीठे का प्रसाद, घी के दिए सभी चीजे अलग लेनी ही चाहिए|

पशुपतिनाथ के बारे में जानकारी। पशुपति नाथ मंदिर कहाँ स्थित है ?

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विश्व में पशुपति नाथ के सिर्फ दो ही मंदिर है एक नेपाल के बागमती नदी के किनारे काठमांडू में है तथा दूसरा भारत में मंदसौर में स्थित है। दोनों ही मंदिरो में मूर्तियां लगभग सामान अकृत्यों वाली है और इसे UNESCO की विश्व धरोहर के रूप में रखा गया है। इस मंदिर में देश विदेश से लोग आते है और अपनी मनोकामना पूरी करनी की प्राथना करते हैं। यह मंदिर हर दिन प्रातः 4 बजे से रात्रि 9 बजे तक खुला होता है, केवल दोपर के समय और शाम 5 बजे मदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं,

भगवान पशुपति नाथ का मंदिर धर्म, कला, संस्कृति की दृष्टि से अद्वितीय है। जैसे काशी के कण-कण जैसै शिव माने जाते हैैं , ठीक वैसे ही नेेपाल में पग-पग पर मंदिर हैैं, जहां कला बिखरी पड़ी है..
उसी कला के पीछे धर्म और संस्कृति की जीवंतता छिपी हुई है।

नेपाल का सुरम्य नगर काठमांडू अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां का मौसम प्रकृति को हर माह हरा-भरा रखने के लिए अनुकूल है। चारों ओर बागमती, इंदुमती और विष्णुमती अनेक कल-कल करती नदियां बहती है, जो कभी वर्षा के पानी से उछलती-चलती हैं, तो कभी पहाड़ों से निकलने वाले बारहमासी जल स्रोतों का निर्मल जल ले कर मंद-मंद मुस्कुराती बहती रहती है, ये सब देखने में अत्यंत मोहक और लुभावनी लगती हैं।

यहाँ हर मौसम में यहां फूलों की बहार रहती है, जो देखने में अत्यंत मोहक है। इस अनुपम प्राकृतिक छटा और भगवान पशुपति के दर्शन करने हजारों पर्यटक विश्व के कोने-कोने से यहां के सौंदर्य की अमिट छाप ले कर अपने घर लौटते हैं और कुछ दिन यहां रुकने पर एक अलौकिक शांति अनुभव करते हैं।

जो भी नर-नारी यहां तपस्या, जप, भगवान आशुतोष की श्रद्धा-भक्तिपूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं, उनकी सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं। वैसे पशुपति के देदीप्यमान चतुर्मुखी लिंग को कुछ विद्वान ज्योतिर्लिंग मानते हैं और कुछ विद्वान इसे ज्योतिर्लिंग नहीं मानते। सर्वस्वीकृत शिव पुराण के अनुसार तो ज्योतिर्लिंग बारह ही हैं, लेकिन शिव पुराण के 351 वें श्लोक में श्री पशुपति लिंग का उल्लेख ज्योतिर्लिंग के समान ही किया गया है।

नेपाल माहात्म्य में सुनी जाने वाली जनश्रुति के अनुसार नित्यानंद नाम के किसी ब्राह्मण की गाय नित्य एक ऊंचे टीले पर जा कर स्वयं दूध बहा देती थी।

नित्यानंद को भगवान् ने स्वप्न में दर्शन दिए जहाँ उसे किसी स्थान के बारे में बताया गया था। तब उस स्थान की खुदाई की गयी और वहां भव्य लिंग प्राप्त हुआ। भगवान् पशुपति नेपाल के शासकों और जनता-जनार्दन के परम आराध्य देवता माने जाते हैं। इस शिव लिंग की ऊंचाई लगभग 1 मीटर मानी जाती है। यह काले रंग का पत्थर है, जो अवश्य ही कुछ विशेष धातुओं से युक्त है। इसकी चमक, आभा और शोभा अद्धितीय हैं।

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नेपालवासियों का ऐसा विश्वास है कि इस लिंग में पारस पत्थर जैसे गुण विद्यमान है, जिससे लोहे को स्पर्श करने से वह सोना बन जाता है। जो भी हो, इस भव्य पंचमुखी लिंग में चमत्कार अवश्य मौजूद है, जो समस्त नेपाल के जनता-जनार्दन एवं भारतवासियों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता रहता है। नेपालवासी अपने हर शुभ कार्य के प्रारंभ के समय भगवान पशुपति का आशीर्वाद प्राप्त करना अनिवार्य मानते हैं। कुछ लोगों का ऐसा विश्वास है कि यह मंदिर पहली शताब्दी का है। लेकिन इतिहासकार इसे तीसरी शताब्दी का बताते हैं। यह मंदिर अति प्राचीन है। समय-समय पर इसकी मरम्मत होती रहती है एवं इसका रखरखाव होता रहा है। नेपाल शासकों के अधिष्ठाता देव होने के कारण शासन की ओर से इसकी पूरी देखभाल सदैव ही होती रही है।

इस मंदिर में केवल हिंदू ही प्रवेश कर सकते हैं। मुख्य द्वार पर नेपाल सरकार के पहरेदार हर समय तैनात रहते है। चमड़े आदि की वस्तुएं मंदिर में ले जाना वर्जित है। अंदर फोटो लेने की इजाजत नहीं है। इस मंदिर की शोभा मंदिर के पूर्वी भाग से, बागमती के पूर्वी तट से भी देखी जा सकती है। विदेशी पर्यटकों के लिए यह मंदिर हमेशा ही आकर्षण का केंद्र माना जाता है। हर मौसम में प्रायः हजारों विदेशी पर्यटक बागमती के पूर्वी तट से फोटो लेते देखे जा सकते हैं।

बागमती के पवित्र जल से भगवान पशुपति का जल अभिषेक किया जाता है। बागमती के दाहिनी तट पर ही भगवान् पशुपति ज्योतिर्लिंग के गर्भ गृह के सामने ही, मरणोपरांत, हिंदुओं के शव को अगनी में प्रज्ज्वलित किया जाता है। नेपालवासी मरने से पहले अपने परिजनों को, अंतिम सांस से कुछ समय पहले, यहां ले आते हैं, जिससे पवित्र नदी के स्नान और गोदान के बाद ही उन्हें मृत्यु प्राप्त हो, ताकि मोक्ष की प्राप्ति हो सके।

फिर मृत व्यक्ति के पैर बागमती में लटका देते हैं। ऐसा कहा जाता है की कभी-कभी कोई मृतक इस प्रक्रिया से पुनर्जीवित भी हो जाता है, जैसा की लोगों में विश्वास है। आम तौर पर ब्राह्मण ही शव को स्नान कराते हैं और मस्तक पर पशुपति का चंदन भी लगाते हैं।

तत्पश्चात् कफ़न में लपेट कर दाह कर्म संपादित कराये जाते हैं। भारत-नेपाल के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान की परंपरा रही है, जो आदि काल से थी, और वह आज भी विराजमान है। आज भी हर धर्मपरायण नेपाली नर-नारी श्री काशी विश्वनाथ के दर्शन और गंगा स्नान तथा चारों धाम यात्रा को जीवन की परम सार्थकता को मानते हैं, तो भारत के तीर्थ स्थलों – बद्रीनाथ, केदारनाथ, रामेश्वरम, द्वारिकाधीश, जगन्नाथपुरी, गंगा सागर आदि यात्रा करने वाले भारतीय बिना पशुपति दर्शन के अपने आपको पूर्ण नहीं मानते हैं।

भारत के बिहार, उत्तरप्रदेश आदि राज्यों से सड़क मार्ग, गोरखपुर तथा रक्सोल आदि से बस द्वारा नेपाल की राजधानी काडमांडू में पंहुचा जा सकता हैं। भारत के दिल्ली, लखनऊ, कोलकाता, पटना, मुंबई आदि स्थानों से वायु मार्ग से भी जाने की उचित व्यवस्था है। काठमांडू में यात्रियों के ठहरने के लिए साधारण से लेकर महंगे होटल तक उपलब्ध हैं।

फाल्गुनी कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को, शिव पार्वती के विवाहोत्सव के उपलक्ष्य में, शिव रात्रि को पूजा-अर्चना का विशेष महत्व होता है। इस अवसर के दिन यहां भारत और अन्य राष्ट्र के लोग दर्शन और पूजन के लिए आते हैं। शिव रात्रि के उपलक्ष्य में यहां विराट मेले का भी आयोजन होता है।

यहां मंदिर में दर्शन करने वाले दर्शनार्थियों का तांता लगना त्रयोदशी की अर्द्ध रात्रि से ही प्रारंभ हो जाता है। यह समय पशुपति दर्शन के लिए उपयुक्त माना जाता है। यहां के लोगों का विश्वास है कि भगवन पशुपति ही नेपाल की रक्षा करते हैं।

भगवान पशुपति नाथ की कथा।

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कथा शुरू करने से पहले अपने साथ में कुछ अक्षर (चावल के दाने) ले लीजिये और जितने भी लोग साथ में इसे सुन रहे हैं उन्हें भी यह अक्षर दे दीजिये और कथा समाप्त होने के बाद इन अक्षरों को मंदिर में चढ़ा दें।

एक बार की बात है भगवान् शिव, नेपाल की सुन्दर तपोभूमि के प्रति आकर्षित हो कर, एक बार कैलाश छोड़ कर यहीं आ कर रम गये। इस क्षेत्र में वह 3 सींग वाले मृग (चिंकारा) बन कर, विचरण करने लगे। अतः इस क्षेत्र को पशुपति क्षेत्र, या मृगस्थली भी कहते हैं। शिव को इस प्रकार अनुपस्थित देख कर ब्रह्नाा, विष्णु को चिंता हुई और दोनों देवता भगवान शिव की खोज में निकले।

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इस सुंदर क्षेत्र में उन्होंने एक देदीप्यमान, मोहक 3 सींग वाले मृग को विचरण करते देखा। उन्हें मृग रूप में शिव होने की आशंका होने लगी। ब्रह्नाा जी ने योग विद्या से तुरंत पहचान लिया कि यह मृग नहीं, बल्कि भगवान आशुतोष ही हैं। ब्रह्नाा जी ने तत्काल ही उछल कर उन्होंने मृग का सींग पकड़ने का प्रयास किया। इससे मृग के सींग के 3 टुकड़े हो गये।

उसी सींग का एक टुकड़ा इस पवित्र क्षेत्र में गिरा और यहां पर महारुद्र उत्पन्न हुए, जो श्री पशुपति नाथ के नाम से प्रसिद्ध हुए। शिव जी की इच्छानुसार भगवान् विष्णु ने नागमती के ऊंचे टीले पर,भगवान शिव को मुक्ति दिला कर, लिंग के रूप में स्थापना की, जो पशुपति के रूप में विखयात हुआ।

पशुपति व्रत की आरती :-

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श्री पशुपति नाथ जी की आरती | Shri Pashupati Nath Ji Ki Aarti:-

ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा ।
त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा ॥ ॐ जय गंगाधर …

कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने ।
गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने ॥ ॐ जय गंगाधर …

कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता ।
रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥ ॐ जय गंगाधर …

तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता ।
तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता ॥ ॐ जय गंगाधर …

क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्‌ ।
इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्‌ ॥ ॐ जय गंगाधर …

बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता ।
किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता ॥ ॐ जय गंगाधर …

धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते ।
क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते॥ ॐ जय गंगाधर …

रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता ।
चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां ॥ ॐ जय गंगाधर …

तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते ।
अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥ ॐ जय गंगाधर …

कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्‌ ।
त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्‌ ॥ ॐ जय गंगाधर …

सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्‌ ।
डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्‌ ॥ ॐ जय गंगाधर …

मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्‌ ।
वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्‌ ॥ ॐ जय गंगाधर …

सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्‌ ।
इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥ ॐ जय गंगाधर …

शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते ।
नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते ॥ ॐ जय गंगाधर …

अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा ।
अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा ॥ ॐ जय गंगाधर …

ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा ।
रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा ॥ ॐ जय गंगाधर …

संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते ।
शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥ ॐ जय गंगाधर …

॥ इति श्री पशुपति नाथ आरती संपूर्णम् ॥


पशुपति मंत्र क्या है ?

संजीवय संजीवय फट । विद्रावय विद्रावय फट । सर्वदुरितं नाशय नाशय फट

पशुपति व्रत का उद्यापन कैसे करें?

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भगवन शंकर को समर्पित पशुपति व्रत के पाच सोमवार पूरे होने के बाद छठे सोमवार के व्रत में 108 वस्तुओ को चाहे कुछ भी जैसे मूंग, चावल 108,मखाने108 , या बेल पत्र 108 कोई सी भी भी सामग्री 108 मात्रा में लेकर शाम को पशुपतिनाथ जी की पूजा के समय उनके चरणों में समर्पित कर दे और नारियल के साथ 11 रूपए दक्षिणा चढ़ाए , साथ में हाथ जोड़कर भगवान शंकर से अपनी मनोकामना मांगे,

ऐसा कहा जाता है की इस व्रत को करने से पशुपति भगवान अत्यंत प्रसन्न होते है और पूरे पांच व्रत पूरे होने से पहले ही मनोकामना पूरी कर देते है , अगर आप अपने सच्चे मन और से सही तरीके से इस व्रत को करते है तो जल्दी ही इस व्रत का परिणाम देखने को मिल सकता है |

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क्या पशुपतिनाथ एक ज्योतिर्लिंग है ? Pashupatinath is Jyotirlinga or not ?

काठमांडू नेपाल के हृदय में स्थित है विश्वप्रसिद्ध पशुपतिनाथ महादेव का मंदिर। यह हिंदुओं का सबसे बड़ा शिव मंदिर कहलाता है। वैसे तो मान्यता प्राप्त बारह ज्योतिर्लिंगों में पशुपतिनाथ का नाम नहीं है फिर भी पशुपतिनाथ मंदिर को दैदीप्यमान लिंग माना जाता है।

Pashupatinath Vrat Katha PDF Download

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