नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में हम पढ़ेंगे sakat chauth ki katha तथा कैसे सकट चौथ का व्रत रखा जाता है , कैसे सकट चौथ के व्रत का उद्यापन किया जाता है और सकट चौथ व्रत रखने से क्या क्या फायदे होते हैं ये सभी तमाम बाते आज हम जानेंगे, तो चलिए श्री गणेश जी का नाम ले कर शुरू करते हैं।

हिंदू धर्म के अनुसार, माघ महीने में आने वाली सकट चौथ का विशेष महत्व बताया गया है. इसके पीछे की पौराणिक कथा स्वम विघ्नहर्ता गणेश जी से ही जुड़ी है. इसी दिन गणेश जी पर बड़ा संकट आकर टला गया था, इसलिए इस दिन का नाम सकट चौथ पड़ा गया था. कथा के अनुसार एक दिन माता पार्वती स्नान करने के लिए जा रही थीं. उन्होंने अपने पुत्र गणेश को दरवाजे के बाहर पहरा देने का आदेश दिया और कहा कि जब तक वे स्नान करके वापस ना लौटें किसी को भी अंदर नहीं आने दें. मां की आज्ञा का पालन करते हुए गणेश जी बाहर खड़े होकर पहरा देने लगे. ठीक उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने पहुंच गए. गणेश जी ने भगवान शिव को दरवाज़े के बाहर ही रोक दिया. ये देख कर भगवन शिव गुस्सा आ गया और उन्होंने त्रिशूल के एक वार से बालक गणेश की गर्दन धड़ से अलग कर दी. इधर पार्वती जी ने बाहर से आ रही आवाज़ सुनी तो वह दौड़ती हुईं बाहर आईं. जब उन्होंने पुत्र गणेश की कटी हुई गर्दन देखी तो माता घबरा गईं और शिव जी से अपने बेटे के प्राण वापस लाने की गुहार करने लगी. शिव जी ने माता पार्वती की बात मानते हुए श्री गणेश को जीवन दान तो दे दिया लेकिन गणेश जी की गर्दन की जगह एक हाथी के बच्चे का सिर लगाना पड़ा. उसी दिन से समस्त महिलाएं अपने बच्चों की दीर्घायु के लिए गणेश चतुर्थी का व्रत रखती हैं.
Sakat Chauth ki Katha : सकट चौथ की व्रत कथा
साहूकार और साहूकारनी
एक गांव में साहूकार और एक साहूकारनी रहा करते थे। वह धर्म पुण्य पूजा पाठ आदि को नहीं मानते थे। शायद इसी कारण वश उनके कोई औलाद नहीं थी । एक दिन साहूकारनी अपने पडोसी के घर गयी। उस दिन सकट चौथ का दिन था था, और उस वक़्त वह पड़ोसन सकट चौथ की पूजा करके कहानी सुना रही थी।
तभी साहूकारनी ने पड़ोसन से पूछा: यह तुम क्या कर रही हो?
इस पर पड़ोसन बोली कि आज सकट चौथ का व्रत है, इसलिए कहानी सुना रही हूँ।
तब साहूकारनी बोली: सकट चौथ के व्रत करने से क्या होता है?
तो पड़ोसन बोली: अरे इसे करने से अन्न, धन, सुहाग, पुत्र सारे मन चाहे फल मिलते है।
यह सुन साहूकारनी ने कहा: यदि मेरा भी गर्भ रह जाये तो में सवा सेर तिलकुट करुँगी और चौथ का व्रत करुँगी।
भगवान श्री गणेश की कृपया से साहूकारनी के गर्भ ठहर गया। अब साहूकारनी पुत्र के लालच में बोली कि मेरे लड़का हो जाये, तो में ढाई सेर तिलकुट करुँगी। कुछ महीनों बाद साहूकारनी के लड़का हो गया, तो वह साहूकारनी कहने लगी कि हे भगवान! जब मेरे बेटे का विवाह हो जायेगा, तो सवा पांच सेर का तिलकुट अवश्य करुँगी।
समय बिता और कुछ वर्षो के बाद उसके बेटे का विवाह तय हो गया और उसका बेटा विवाह करने के लिए चला गया। लेकिन साहूकारनी ने तिलकुट नहीं किया। इस कारण से चौथ देवता क्रोधित हो गये और उन्होंने फेरो से साहूकारनी के बेटे को उठाकर पीपल के पेड़ पर बिठा दिया। सभी लोग दूल्हे को खोजने लगे पर वो कही नहीं मिला, अब हतास होकर सभी लोग अपने-अपने घर को लौट गए। और इधर जिस लड़की से साहूकारनी के लड़के का विवाह होना था, वह अपनी सहेलियों के साथ गणगौर पूजने के लिए जंगल में दूब लेने चली गयी।
तभी उस कन्या को रास्ते में पीपल के पेड़ से आवाज आई: ओ मेरी अर्धब्यहि!
यह बात सुनकर जब लड़की अपने घर आयी, उसके कुछ समय के भीतर ही वह धीरे-धीरे सूख कर काँटा होने लगी।
एक दिन दुखी होकर लड़की की माँ ने कहा: मैं तुम्हें अच्छा खाना खिलाती हूँ, अच्छा पहनाती हूँ, फिर भी तू सूखती जा रही है? ऐसा क्यों?
तब कन्या अपनी माँ से बोली कि माँ जब भी दूब लेने जंगल जाती हूँ , तो पीपल के पेड़ से एक आदमी बोलता है कि ओ मेरी अर्धब्यहि।
उसने हाथों में मेहँदी लगा राखी है और सर पे सेहरा भी बांध रखा है। तब उसकी माँ ने उस पीपल के पेड़ के पास जा कर देखा, यह तो वह और कोई नहीं उसका जमाई ही था।
तब उसकी माँ ने लड़के से कहा: यहाँ क्यों बैठे हो? मेरी बेटी को तो अर्धब्यहि कर दी और अब क्या लोगे?
इस पर साहूकारनी का बेटा बोला: मेरी माँ ने चौथ का तिलकुट बोला था लेकिन नहीं किया, इस लिए चौथ माता ने नाराज हो कर मुझे यहाँ बैठा दिया।
यह सुनकर उस लड़की की माँ तुरंत साहूकारनी के घर गई और उससे पूछा कि क्या तुमने सकट चौथ के लिए कुछ बोला था ?
तब साहूकारनी बोली: हाँ मैंने तिलकुट बोला था। तब लड़की की माँ ने सभी किस्सा बताया उसके बाद साहूकारनी बोली बस मेरा बेटा घर आजाये, तो मैं ढाई मन का तिलकुट करुँगी।
इससे श्री गणेश भगवन प्रसंन हो गए और उसके बेटे को फेरों में वापस लाकर बैठा दिया। साहूकार के बेटे का विवाह धूम-धाम से हो गया। जब साहूकारनी के बेटा एवं बहू घर आ गए तब साहूकारनी ने बिना किसी देरी किये ढाई मन तिलकुट किया और हाथ जोड़कर बोली बोली हे चौथ देव! आप के आशीर्वाद से मेरे बेटा-बहू घर आ गए हैं, जिससे में हमेशा तिलकुट करके व्रत करुँगी। इसके बाद सभी नगर वासियों ने तिलकुट के साथ सकट चौथ का व्रत करना प्रारम्भ कर दिया।
अब अपने दोनों हाथ जोड़कर बोलो, हे सकट चौथ देवता ! जिस तरह आपने साहूकारनी को बेटे-बहू से मिलवाया, वैसे ही हम सब को मिलवाना। इस कथा को कहने सुनने वालों का भला करना।
बोलो सकट चौथ की जय। श्री गणेश देव की जय।
सकट चौथ पूजा विधि
सकट चौथ के दिन प्रातः काल पानी में गंगाजल दाल कर स्नान करना चाहिए।
तथा स्नान के बाद पिले या लाल रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए।पूजा स्थान की साफ़ सफाई करनी चाहिए।
हाथ में अक्षत, फूल, तथा जल लेकट सकट चौथ का व्रत एवं गणेश जी का ध्यान करना चाहिए।
एक चौकी पर पीला कपडा बिछाकर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें।
अब अक्षत , दूर्वा, फल, फूल, सुपारी, जनेऊ, पान का पत्ता, हल्दी, दही, मोदक, शहद, वस्त्र, धुप, दीप, गंध, आदि अर्पित करें। ध्यान रहें गणेश जी को तुलसी का पत्ता अर्पित न करें।
सकट के दिन गणेश जी को तिल से बने व्यंजनों का भोग लगाएं। इसे तिल चौथ या तिलकुट चौथ इसी वजह से कहते हैं।
सकट चौथ से एक दिन पहले पूर्ण सात्विक भोजन करें (मांस आदि का भोजन भूलकर भी न करें) तामसिक वस्तुओ और विचारों का सेवन न करें। पूजा और व्रत के लिए तन मन कर्म से शुद्ध हो जाएं।
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